भारत सहित दुनिया भर के 100 देशों में गायत्री परिजनों के द्वारा "गृहे गृहे गायत्री यज्ञ" का कल 31 मई को एक अनूठा आगाज किया जा रहा है। इसकी तैयारी हजारीबाग के गायत्री परिजन भी जोर शोर से कर रहे हैं। समूचे प्रांत में 10 लाख परिजनों द्वारा इस यज्ञ का लघु अनुष्ठान संपन्न करवाने का लक्ष्य रखा गया है , इसमें भागीदारी के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में निबंधन किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि इन दिनों इस विकट "कोरोना काल" में यज्ञ और आयुर्वेद का वर्चस्व बहुत ही तेजी से मुखर हुआ है, आयुर्वेदिक चाय, काढा एवं औषधियों की और पूरी दुनिया में जनमानस का रुझान बहुत ही तेजी से बढ़ा है।
बताया जा रहा है कि आयुष विभाग ने यह प्रमाणित किया है कि यज्ञ आहुति में पर्यावरण को सेनीटाइज करने की अद्भुत क्षमता है। ऐसे में कुछ लोगों की यह बातें स्वतः खारिज हो जाती है धूआं कोई भी हो कार्बन डाइऑक्साइड गैस उत्पन्न करता है और प्राणवायु नष्ट करता है। दरअसल आयुष विभाग ने इसे यूं ही बस प्रमाणित नहीं कर दिया है।दरअसल तथ्य यह है कि यज्ञ कुंड की बनावट ऐसी होती है कि उसकी अग्नि उद्दीपन प्रज्वल प्रक्रिया भट्टी से भिन्न होती है। अग्नि के समन्वय से अग्निहोत्र प्रक्रिया में निर्मित ऊर्जा के कारण पदार्थ छोटे-छोटे कणों में विभक्त होता रहता है यह एक प्रकार से रासायनिक विखंडन की प्रक्रिया है। इससे दो परिणाम निकलते हैं- आवेशित कण को धारण किए सूक्ष्म औषधि घटक या तो वाष्पीभूत हो जाते हैं अथवा अवशिष्ट भस्म का एक अंग बन जाते हैं। चुंकी प्रज्वलन प्रक्रिया धीमी है अतः जो धूम्र बनते हैं वे कार्बन डाई ऑक्साइड और मोनोऑक्साइड रहित होते हैं तथा उसमें सिर्फ इथिलीन ऑक्साइड, प्रोमप्लीन ऑक्साइड, फाम्रल्डीहाइड एवं वीटाप्रोमपीओ लेक्टन तथा एसिटिलीन का अनुपात सर्वाधिक होता है।
बहरहाल यह वैज्ञानिक की भाषा में एक सर्वविदित तथ्य है की यह मिश्रण एक शक्तिशाली वायु शोधक सब मिश्रण होता है जो पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखी गई वांग्मय "यज्ञ एक समग्र उपचार पद्धति" पृष्ठ संख्या 4.7 उन्होंने स्पष्ट लिखी है। यह बात आपदा प्रबंधन के विपिन सिंह एवं युवा मंडल मटवारी की संगीता गोस्वामी ने बताई एक बातचीत के दौरान कहा।